Sunday 11 June 2017

NIM Basic Course day 3 Rock Climbing


 हमारी रोप नंबर 07

                                    NIM में ये मेरा तीसरा दिन था सुबह 4:45 पे उठ गया और रोज की तरह 5:20 तैयार होकर चाय पीने चला गया चाय भी वही, पानी ज्यादा चीनी कम, दूध का नामो निशान कही कही... पर क्या करे एनर्जी के लिए पीनी पड़ती है, 5:50 फॉल इन पे पहुंच गए रोप के हिसाब से सब खड़े होते है आपने रूकसक लेके, इसके बाद सबकी गिनती होती है जो लेट आते है उनको वही सज़ा मिलती है उट बैठक, मेढक चाल या पुशअप निकलने की । खेर में तो समय से पहुँच गया 6 am हमे यहाँ से तेखला के लिए रवाना कर दिया गया ।


सुबह निकलने के समय का नजारा

                                                               अब सबसे पहले तेखला रॉकक्लीम्बिंग साइट के बारे के कुछ जानकारी देता हूं ये जगह हमारे इंस्टिट्यूट से लगभग 9 किमी दूर है जहाँ हमने अगले कुछ दिन पैदल जाना है वो भी 20-25  kg का रकसैक उठा के, साथ में मेरे जैसे को 8 -10 किलो की रोप भी उठानी होगी । फिर वहा पे हमे रॉकक्लीम्बिंग करनी है। ये साइट गंगोत्री रोड पे ही 4 किमी चलने के बाद मुड़ने पे आती है खेर हम निकल गए कुछ दूर चलने पे अहसास हो गया कि यहाँ बहुत मुश्किल आने वाली है बहुत बहुत भारी था रूकसक बैग, नानी याद आरही थी वो भी लगातार और जोर से, NIM से निकलने के बाद थोड़ी दूर तक ढलान है जहा कुछ घर बने हुए है उन्ही में से होते हुए हम निकले, फिर एक बड़ी सड़क आजाती है जिसपे 500 मीटर चलने के बाद हमारा रास्ता बदल जाता है,  यहाँ से हम एक नीले गेट में घुस गए जो बिजली विभाग के जीएसएस का इलाका था यहाँ से हम एक पगडण्डी पकड़ के चल दिए, जो लोकल रास्ता था, इससपे थोड़ी सी दुरी पर  एक  जगह बहुत बदबू  आ रही थी शायद ऊपर कोई गाय मरी  हुयी थी,वहा से भाग के रास्ता पार किया, तब तक आगे वाले काफी दूर निकल गए तो बस भागना चालू रहा, ये लगभग 1-2 किमी भागते हुए निकल गए, फिर हमने भागीरथी नदी का पुल पार किया और उत्तरकाशी के आबादी वाले इलाके में आ गए, यहाँ से आगे चढ़ाई चालू यहाँ भागीरथी नदी के पुल पर अल्टीट्यूट 3500 फ़ीट है आगे थोड़ी थोड़ी चढ़ाई फिर उत्तरकाशी से गंगोत्री वाली सड़क पे चलना हुआ, काफी देर इस रोड  दाहिने तरफ  मोड़ थोड़ी देर चढ़ाई मिली इस चढ़ाई में तेज़ प्यास लग गयी, अब यहाँ की सबसे खास बात यहाँ पूरे रास्ते में बीच मे रुकने के लिए सिर्फ एक जगह है जहाँ आप पानी पी सकते हो, वो वो भी 5 किमी चलने के बाद आता है ओर पानी भी खुद का लाया हुआ ही पीना है, हम तक़रीबन 7:05 पे यहाँ पहुंचे, फिर हमने पानी पिया और हल्के हुए तभी चलने की सिटी बज गयी और बेग उठा के भागे, यहाँ से काफी दूर तक भागया तब जाके सभी लोग लाइन में चलने लगे, यहाँ से आगे लगातार चढ़ाई ही चढ़ाई है हालत ख़राब होने लगी फिर एक जगह थोड़ा सा शॉर्टकट लिया गया वह थोड़ी सी कच्ची सीढिया आ गयी जहा पे थोड़ा धीरे चल रहे थे तो आराम मिल गया लेकिन ऊपर चढ़ते ही काफी दूर तक फिर भागना पड़ा, फिर काफी दूर तक लगातार चलते गए और एक मोड़ पर NIM का मील का पत्थर दिखाई दिया, यहाँ से हमे ऊपर चढ़ना है सीधी खड़ी चढ़ाई 500 मीटर, खेर ये तो मैं तो आराम से चढ़ गया बस वजन थोड़ा ज्यादा लग रहा था  ऐसे करते करते 6 बजे के निकले हुए 8 बजे हम TEKHLA ROCK-CLIMBING AREA पहुंचे । फिर वहाँ पिटी में 20-30 मिनट एक्सरसाइज करवाई गई ओर उसके बाद हमारे टिफन में हमे नास्ता दिया गया 3 पूरी छोले की सब्जी साथ मे दलिया, 1 मौसमी ओर चाय भी । चलो जैसा भी था कुछ तसली मिली पेट को, मेरी तो सबसे बड़ी कमजोरी ही भूख है खा खा के पेट इतना बड़ा कर रखा है पर क्या कर सकते है भूख लगती है तो खाना चाहिए, क्यों जाट भाई । नास्ते के बाद हमारी अगली क्लास लगी रॉक क्लाइम्बिंग के सिद्धांत और क्या होती है रॉक क्लीमम्बिंग-

                                                 सच बताऊ आज तक सिर्फ फिल्मो में ही देखा था ये सब खुद करने के विचार से ही पसीने छूट रहे थे , सामने एक बोल्डर ( बड़ा पत्थर जिसमे आज तक चढ़ने का सोच भी नहीं सकता था) उसके पास खड़े है हमारे टीचर,  यहाँ की सबसे बड़ी खासियत ये ही है कि सब कुछ प्रैक्टिकल करके ही क्लास दी जाती है अब टीचर ने क्लास लेनी चालू की तो समझ आया कुछ कुछ, बाकी उन्होंने प्रक्टिकल करके दिखाया तो लगा कि शायद में भी कर लूंगा, तो ठीक है 60 मीनट की क्लास के बाद ही हमारा नंबर आगया, 10 बोल्डर पे चढ़ना था आज, अलग अलग तरह की क्लीमम्बिंग के लिए वो बोल्डर मार्क किये गए थे पर पहले पे ही चढ़ते समय समझ आगया की हम तो बस कागजी शेर है हमारे बस का ना है यह चढ़ना वढ़ना

विनोद गुसाईं (VINOD GUSAIN)

                                 इस क्लास की जानकारी से पहले आज हमें हमारे रोप के इन्सटेक्टर मिले जिनका नाम है VINOD GUSAIN, जो कि उत्तरकाशी के ही रहने वाले है, 2009 में एवरेस्ट फतेह की है उन्होंने ओर यहाँ NIM में 12 साल से इन्सटेक्टर है उसके अलावा भी उन्होने शिवलींग, भागीरथी 1-2 , सतोपंथ समिट किया हुआ है और भी काफी समिट किये है, उनका व्यवहार बहुत अच्छा लगा बात करने में एक दम सिंपल ओर मधुर भासी व्यतित्व वाले इंसान है हमारी सारी रोप को वो पसंद आये, विनोद सर बहुत ही रोचक सख्सियत है इनकी पूरी जानकारी आगे के एक लेख में दूंगा, उसके अलावा आज हमारी रोप में एक साथी नया जुड़ा जिसका नाम जय है जो कि भोपाल का रहने वाला है और पेशे से एक स्टूडेंट है उसके आने से हमारी रोप में टोटल 6 लोग हो गये ओर हमारे कौर्स में 67 ।

                                      अब वापस आते है क्लास में ... सर ने बोला सबसे पहले हम सबसे आसान वाला करते है चलो भाई करते है ...आसान वाह वाह.....  ये अगर आसान है तो मुश्किल क्या होगा पहले बोल्डर पे चढ़ते समय बस यही सोच रहा था बाप रे इतना मुश्किल होता है पत्थर पे चढ़ना, ये आज ही पता चला था एक जरुरी बात इन बोल्डर पे चढ़ने के लिए रबर सोल वाले स्पेशल शूज आते है जो कि हमे NIM ने ही दिए है, इनको PA शू भी बोलते है, उन्ही से हम धीरे धीरे  5 पत्थरो पे चढ़ गए,  अब जब हम छटे वाले पे चढ़ रहे थे तभी नए साथी जय के पैर आपने आप मुड़ने लगे शायद कुछ कमजोरी की वजह से खिंचाव आगया था, डॉक्टर वहाँ हमेशा पास ही रहते है सर ने तभी आवाज देखे डॉक्टर को बुलवा लिया और हम ने जय को छोड़ के छठे बोल्डर पे चढ़ाई चालू कर दी, टोटल 10 बोल्डर में से 1 पे मुझ से नही चढ़ा गया, बाकी पे थोड़ी या ज्यादा मेहनत और मेरे रोप के साथियो के सहयोग से चढ़ गया हमारे ग्रुप में बाकी लोग रॉक क्लीमम्बिंग पहले भी करते रहे है तो उनको कम ही मुश्किल आयी, है अंतिम वाले बोल्डर में सर ने 3  बार चढ़ाया तो हालत ख़राब हो गयी पहली बार मुश्किल से चढ़ा, बिना तकनीक इस्तेमाल किये सिर्फ जोर लगा के चढ़ गया पर सर ने दुबारा तकनीक इस्तेमाल करके चढ़ने को बोला, इस बार बोल्डर के ऊपर के हिस्से पे जाके लटक गया और बड़ी मस्कत के बाद चढ़ा पर ये भी सर को पसंद नहीं आया तो तीसरी बार चढ़ने को बोल दिया इस बार हर एक होल्डर का इस्तेमाल किया और सही चढ़ा तब छोड़ा,  तो इस तरह हमारी ये क्लास 2 बजे खत्म हुई 2 बजे तक मेरी तो हालात पतली हो गयी हाथो में भयानक दर्द हो रहा था हमारे एक लेह वाले साथी को भी काफी दर्द था पर वहा एक ही इलाज़ है भर पेट खाना खायो सब अपने आप सही हो जाएगा । फिर हमने खाना खाया आज खाने में मटर मशरूम की सब्जी साथ मे आलू पालक ओर दाल चावल मिले भर पेट खा के थोड़ी देर के लिए सो भी लिए क्योंकि अगली क्लास 3 बजे थी 30 मिनट सोने के बाद क्लास की सीटी बज गयी । अगली क्लास रॉक क्लीमम्बिंग इकुपमेंट के साथ की थी जो कि हमे कल इस्तेमाल करके रॉकक्लीम्बिंग करनी थी
       इन इकुपमेंट मे मुख्य कुछ ये है
1. रोप
2. सीट हार्नेस
3. केरावीनर (स्क्रू और प्लेन )
4. PA शू
5. पिटोन
6. लॉन्ग सीलिंग
7. शार्ट सीलिंग
8. फ्रेंड्स
इत्यादि
            
             आज की क्लास में हमे इकुप्मेंट के साथ रॉक क्लाइम्बिंग सिखायी गयी इसके सारे बेसिक्स बताये गए , जो की हमे कल करने है इस क्लास का मैंने एक वीडियो बनाया है जो की यहाँ पे डाल रहा हु बाकी क्लास की जानकारी आपको कल खुद करके ही दूंगा, क्लास के बाद हमे चाय मिली और चाय के बाद 4 बजे हम वापस निकल गए, वापसी में रोड तक पैदल फिर निम की बस में हॉस्टल आगये, यहाँ शाम को 6 बजे से 7  बजे तक खेल हुए हमारे खेलने के कुछ क्षण मैंने वीडियो में कैद किये है उसके बाद 8 बजे तक मूवी देखने को मिली आज हमे एवेरेस्ट के एक भयानक हादसे पे बनी मूवी दिखाई गयी पर अंग्रेजी में होने की वजह से कम ही लोगो को समझ आयी।  उसके बाद रात का खाना खाया और सो गए। 

आज का वीडियो -

                                        


NIM का मेरा पूरा तजुर्बा आप क्रम के हिसाब से नीचे दिए लिंक से पढ़ सकते है -
1.NIM -Nehru Institute Of​​ Mountaineering.......बेसिक कोर्स मेरे साथ
2.NIM में ट्रेनिंग का श्री गणेश DAY -1
3. NIM Basic Mountaineering Course Day-2
4. NIM Basic Course Rock Climbing DAY -3


जीएसएस के अंदर वाली पंगडंडी -




पानी पीने वाली जगह



तेखला का इलाका यहाँ से चालू होता है





500 मीटर की खड़ी चढ़ाई


क्लास लेते इंस्टेक्टर



रॉक क्लाइम्बिंग करते मनीष सर



चाय पीते मेरे साथी




शाम को दिखाई फिल्म में अवलांच का एक दर्शय








Thursday 1 June 2017

FIRST TIME ICE ROAD SACH PASS CROSSING बैरागढ़ से किल्लाड

FIRST TIME INDIA'S ICE ROAD SACH PASS CROSSED BY BIKER IN DEC

                                            रात को ताश खेलते और गपे मारते समय का पता ही नहीं चला, 10 बजे तक़रीबन हम कल की सोचते सोचते सोने अपने कमरे में चले गए, अब योगी भाई और मुझ को सपने में भी खाईया ही दिख रही थी ... कल क्या होगा यही चल रहा था पर हमारी तैयारी भी पूरी थी और ऐसे दमदार साथियो के साथ होने से हौसला वैसे भी बहुत बढ़ जाता है ऊपर से भगवान का दिया हुआ वरदान है आपने पास तो, मेरी नींद में कोई भी समस्या या चिन्ता व्यवधान नहीं डाल सकती आँख बंद करो और शटर डाउन 5 मिनट भी नहीं लगते सोने में, मजे से बढ़िया रजाई ओड के सो गया और सुबह जल्दी उठ भी गया। 
                   
                                           अब जल्दी उठने के कभी फायदे मिलते है तो कभी नुकसान भी, यहाँ फायदा मिला की सबसे पहले उठ के सबसे पहले फ्रेश हो गया, पर कोई और ना उठा तो वापस जाके लेट गया और इंतज़ार करने लगा कब दूसरे उठे और तैयारी करे चलने की, सबको पता था की जल्दी निकलेंगे तो ठण्ड से ही हालत ख़राब हो जाएगी, सब आराम से 6:30 तक उठे गये, फिर वो लोग तैयार हुए इतने में हमने भी सामान पैक कर लिया। तैयार होने के बाद हमने 2 लीटर जूस लिया और चामुण्डा होटल की और चल दिए। चामुण्डा यहाँ का इकलौता अच्छा होटल है रूम का 1200 से 2400 रुपए तक चार्ज लेता है और उसका रेस्टोरेन्ट भी ठीक है तो आज का नास्ता चामुण्डा होटल पे। जाते ही 8 आलू परांठे का आर्डर कर दिया क्युकी हमे पता था यहाँ से किल्लार तक खाने को हवा के अलावा कुछ नहीं मिलना है साथ में एक जूस की बोतल भी खोल ली और जम के नास्ता किया पराठे थे स्वाद, बस आलू पराठे में आलू कही मिले नहीं ....... चलो कोई ना मतलब पेट भरने से था वो भर गया और हमने वापसी की हमारे होम स्टे की तरफ, वहा से बैग लेके बाइक पे रखे और निकलने के लिए तैयार, समय सुबह 7:30 हम निकल गए अब बैरागढ़ से निकलते ही एक पुलिस बेरियर आता है जहा एक पुलिस वाला भाई LMG GUN लेके खड़ा है जिसपे एंट्री करनी होती है और यही से रास्ता बंद हो जाता है यहाँ हमने रात को ही आके एंट्री कर दी थी पर अभी कोई और भाई की ड्यूटी थी तो वो हमारे नाम रजिस्टर में देख के हैरान पर थोड़ी हिदायत के साथ जाने दिया उसने, और हिदायत भी एक ही जो सब दे रहे थे ध्यान से चलना धीरे धीरे और निचे उतारते समय ज्यादा ध्यान रखना, ठीक है भाई साहब कह के चल दिए। 

ये है अभी आगे सड़क और कालाबन

KALABAN CHAMBA TERRORIST ATTACK 
                                            बैरागढ़ से निकलते ही इस रोड की भयावतता से सामना हो जाता है  यहाँ से आगे सड़क बस पत्थरो की बनी हुयी है बाइक बड़ी मुश्किल से 20 किमी की स्पीड से चल रही है ऊपर से घना जंगल और उसका नाम कालाबन। बैरागढ़ में कुछ सालो पहले चौकी नहीं थी, ऐसी जगह ऐसी गन के साथ ड्यूटी करने की जरुरत क्यों पड़ी और आज तक रोड ना बनने के पीछे एक दुखद घटना है ये वाक्या 3 अगस्त 1998 की सुबह का है इस रोड का 2 जगह काम चल रहा था कालाबन और सतरुंडी और इसपे काम करने वाले यही के लोकल लोग थे जो काम करके घरो में सो रही थे तक़रीबन सुबह के 3 बजे डोडा से पाकिस्तान से ट्रेंड 10-15 आंतकवादियो ने यहाँ हमला कर दिया और सोते हुये हिन्दुओं को उनके घरो से बाहर निकला और लाइन में खड़ा कर दिया फिर सबको ऑटोमेटिक हथियारों से गोली मार दी उन्होंने दोनों जगह पे 35 हिन्दू मारे और इस हमले में 11 हिन्दू गंभीर घायल हो गए थे और उन 35 में से 11 हिन्दुओं को वो आपने साथ ले गए थे उनका सारा सामान लूट के उन्ही से उठवा के ले गए बाद में उन्हें मार दिया था सतरुंडी से जम्मू कश्मीर की बॉर्डर 30 किमी ही है इस एरिया को पांगी वेली बोलते है बताया जाता है इसी एरिया में उनकी लाशे मिली थी। वो समय भी आज की तरह कश्मीर के ख़राब हालत का था इस घटना से कुछ दिन पहले भी गुलाबगढ़ के पास 25 हिन्दुओं की हत्या कर दी गयी थी ये सारा काम लश्कर का था जिसके मुख्य आतकवादी बिल्लू गुज्जर को पंजाब पुलिस ने बाद में गिरफ्तार भी कर लिया था इस घटना के बाद पांगी वेली से हिमाचल के एंट्री पॉइंट पे और कालाबन से आगे परमानेंट पुलिस पोस्ट बना दी गयी अब पांगी वेली में बनी चौकी पे तो बहुत बड़ी सख्या में जवानो की ड्यूटी रहती है उस समय यहाँ सिर्फ 2 जवानो की ड्यूटी थी इस घटना का समाचार भी ड्यूटी पे तैनात घायल सिपाही ने 8 -10 किमी पैदल चलके फारेस्ट की एक पोस्ट पे दिया तब जा के इस घटना का पता सबको चला था तब तक आतकवादी कश्मीर एरिया में चले गए थे ये घटना जहा हुयी थी वहा एक बोर्ड़ लगा हुआ है जिसपे सारी घटना लिखी हुयी है




                          सुबह का समय जंगल का इलाका और ऊपर से इतनी भयंकर ठण्ड की साँस भी जम जाये, मेरे पास उस समय टेम्परेचर नापने वाली घडी नहीं थी पर शायद आज तक की सबसे ज्यादा ठण्ड यही लग रही थी 2  दस्ताने पहन रखे थे पर हाथ जम गए सिर्फ हल्का सा हिल पा रहे थे जिससे रेस देके बाइक धीरे धीरे आगे बढ़ा रहे थे थोड़ी देर में अंगुलियों में भयंकर दर्द होने लग गया दर्द सिर्फ मुझे नहीं साथ वालो को भी हो रहा था तो हमने थोड़ा रुके और बस चल दिए, ये परेशानी तो होनी ही है जब तक धुप न लग जाये और इस जंगल में धुप का कोई चांस नहीं है तो चलते रहो, थोड़ी दूर पे ही रास्ता बंद आगे एक जेसीबी मशीन लगी हुई थी रास्ते को चौड़ा करने में, शायद ये रोड जल्दी ही बनेगी ऐसी बाते मैंने सुनी थी उसी का काम चल रहा था, हम बाइक से उतर के इंजन पे हाथ गरम करने लग गये थोड़ा आराम मिला 20-25 मिनट में रास्ता खुल गया और हम चल दिए तक़रीबन 9 बजे थोड़ी सी धुप मिली तो रुक गए और फोटो खीची, फिर चल दिए अभी 90 मिनट में सिर्फ 15  किमी ही आये है तो सोचा अब स्पीड खीचते है लेकिन ये रोड ऐसी ही थोड़े आइस रोड है यहाँ से थोड़ा सा चलते ही पहले मोड़ पे बड़ा सा झरना आगया। इस मौसम में झरना तो चलता नहीं है बस आइस जमी रहती है अब ये आइस कम से कम 100-150 फ़ीट लम्बाई में थी और आज तक कभी मैंने या मेरे दूसरे किसी साथी ने आइस पे बाइक नहीं चलायी तो हम तो देख के हके बके रह गए, ये क्या है भाई ये तो छोटा सा झरना था और इसपे इतनी आइस तो आगे बड़े बड़े झरने है वहा क्या होने वाला है सब समझ आ रहा है पर कोई ना हमारी तैयारी थी इन झरनो को पार करने की, मैंने ये रोड जुलाई में देखा था तो आईडिया था की क्या होने वाला है इसलिए हथियार साथ लाये थे, निकला हथोड़ा और लग गए आइस तोड़ने, अबे ये क्या है इसपे तो बस निशान पड़ रहा है ये बहुत ताकत से टूटेगा, तो लग गया में हेलमेट पहन के आइस तोड़ने में जैसे तैसे करके पथरो और हतोडे से मार मार के छोटा सा रास्ता बनाया, यहाँ रोड की चौड़ाई 10-12 फ़ीट ही है और आइस का ढालान खाई की तरफ है क्युकी पानी उसी ढलान से जाता था और अब आइस भी उसी ढालान पे जमी हुयी है और निचे 1000 फ़ीट गहरी खाई अगर बाइक फिसली तो रुकना नामुमकिन है तो हमे बड़े ध्यान से बाइक निकलना होगा अब हम में से एक आदमी बाइक को चलायेगा, 2 दोनों तरफ से पकड़ेंगे और एक हथोड़ा लेके बाइक को सेफ रखेगा, सच में आज तक का सबसे खतरनाक अनुभव था ये बड़ी मुश्किल से पहली बाइक निकली फिर थोड़ा हौसला हुआ तो बाकि बाइक भी निकाल ली, ऐसे यहाँ 15 -20 झरने है सब पे ऐसे ही निकालनी पड़ेगी

कांच के जैसी है ये आइस रोड -




                                              धीरे धीरे आगे बढे 2 -3 झरने पार किये होंगे तभी एक बहुत बड़ा झरना आगया यही यहाँ का सबसे बड़ा झरना है काम से काम 200 मीटर लम्बा होगा, देख कर ही डर लग रहा था इस झरने को पार करने में हालत ख़राब हो गयी बड़ी मुश्किलों से बाइको को पार करवाया 2  जगह तो आइस ज्यादा टूट गयी तो बाइक पानी के अंदर बैठ गयी इतना ठंडा पानी हाथ लगाने की हिमत न हो उसमे पैर रख के बाइक को निकाला, हा एक बात जरूर थी रोड तो डरावनी थी पर झरना बड़ा सूंदर था हमने काफी देर रुक के फोटो लिए





                               यहाँ सनी भाई ने एक पर्चा और दिया, मैं जब झरने पे थोड़ा सा चढ़ के फोटो खींच रहा था तो भाई बोला मुझे इस जमे हुए झरने के ऊपर चढ़ना है तो हम ने मना किया मत लो ये पन्गा कही चोट लग जाएगी पर सनी भाई तो सनी भाई है नहीं माने, बोले लायो राकेश ये हतोड़ा दो मैं चढ़ के दिखता हु, मान गए भाई को भाई तो सटा सट ऊपर चढ़ने लगे 4-5 मिनट में ही कम से कम 10-15 फ़ीट ऊपर चढ़ गए अब वहा से ऊपर जाने का रास्ता न था तो भाई ने हथोड़ा वही टांगा और मुड़ के फोटो खींचने के लिए बोले तभी आइस ने अपना रूप दिखा दिया और भाई का पैर फिसल गया अब भाई 10 फ़ीट से फिसलते हुए निचे आ रहे थे और निचे बड़े बड़े पत्थर थे बड़ी मुश्किल से सर को बचाया लेकिन थाई पत्थर को लग गयी, और भाई को अच्छी खासी चोट लग, 1 फ़ीट की लम्बी रगड़ पड़ी शायद काफी दिन तक दुखी भी होगी, खेर भाई है तो शेर कहा इन चोटों को याद रखते है, पर हमे डर लगा कही कुछ हो जाता तो क्या मुँह दिखते, आगे से ध्यान रखेंगे और ऐसे पंगे किसी को भी नहीं लेने देंगे। अब मेरा हथोड़ा वही टंगा रह गया जिसको हमने पत्थरो से मार मार के निचे गिराया यहाँ भी सनी भाई का पत्थर ही निशाने पे लगा था।

                                     

सनी भाई झरने पे चढ़ते हुए
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                                   बड़े झरने को पार करने के बाद हमे एक जगह फिर काफी चौड़ा और लम्बा आइस कट और झरना मिला, बहुत ही सूंदर ऐसा लग रहा था मानो गिरते हुए ही जम गया हो यहाँ भी कुछ देर फोटो ली यहाँ बाइक बहुत फिसल रही थी तो एक छोटा सा वीडियो भी बनाया जिसका लिंक यहाँ दे रहा हु, फिर हम वहा से निकल गए कुछ दूर बार एक और झरना मिला यहाँ पानी बह रहा था और पानी के गिरने से डायमंड जैसे आइसकट बन रहे थे यहाँ भी कुछ देर रुक गए बस ये हमारा लास्ट स्टॉप है यही सोच के फुल स्पीड से निकल गए

डायमंड वाला झरना -



                                 अब यहाँ स्पीड थोड़ी देर के लिए ही होती है आगे का रास्ता बहुत भयानक है बड़े बड़े पत्थर सड़क पे निकले रहते है औ खड़ी चढ़ाई है सच पास तक बाइक बड़ी मुश्किल से  15-20 की स्पीड से चल रही थी पर हा रुके नहीं चलते गए चलते गए एक पास से पहले रोड में 1-2 फ़ीट तक गहरे खढे है उसमे बाइक फस गयी और ३ लोगो के धका मरने से भी बड़ी मुश्किल से चढ़ रही थी कुछ दूर बाद स्नो के कट आने लग गये तो आइस की मुसीबत काम हुयी पर एक जगह 50 मीटर स्नो के कट को पार करने के बाद सनी भाई की बाइक फिसल गयी खेर गति काम होने के कारण उनको चोट तो नहीं लगी पर फिर हम और संभाल कर बाइक चलाने लगे धके मार मार के हम सच पास 1 बजे पहुँच गए 30 किमी 6.30 घंटे में शाबाश मेरे शेरों नाम रोशन कर दिया शायद इतनी धीरे बाइक चलाने का यही इकलौता अनुभव है तो बड़ी बात यहाँ तक पहुचं गए, अब जूस पिया मदिर में पूजा की फोटो लिए और निकल लिए।

साच पास पे कुछ पल चेन के-


ये है साच पास से आगे की ढालान- 




                                  साच पास की ऊंचाई 14500 फ़ीट है और दिसंबर का महीना है तो यहाँ इस समय ऐसी ठण्डी हवा चलती है जहा चमड़ी मिल जाये उसको दर्द से जला देती है 1000 सुईया चुभने जैसी ठंडी हवा, जल्दी ही यहाँ से निकलने में भलायी है भाई फटाफट बाइक पे बैठे और बाइक स्टार्ट करके चल दिए. अरे ये क्या है पहले मोड़ से मोड़ते ही यही आवाज निकली और मैं वही रुक गया, साथ वाले भाई पहुंचे तो देख के राम राम राम जय भोले और जोर जोर से हंसी निकल रही थी ये सबका कारण नीचे का नजारा था, एक दम तीखी ढलान ऊपर से पूरी रोड पे स्नो पड़ी हुयी थी तो आइस भी न दिखने वाली साथ में इस साइड अब सूरज भी ना आएगा बहुत ही सुन्दर पर डरावना नजारा था और सिर्फ हंसी छूट रही थी जय भोले बोलते हुए निकले, बाइक स्टार्ट हो न हो कुछ फर्क नहीं है इतनी तीखी ढलान है की बंद बाइक को 100  की स्पीड में भगा लो, पर मुँह बाये खाईया हमारा ही इंतज़ार कर रही थी तो बड़ी मुश्किल से 10  की स्पीड में बाइक को ब्रेक पे ही चला रहे थे, ब्रेक में से भी ट्रक के जैसी चु चु कि आवाज आरही थी, 15 -20 मिनट में ही हाथो में भयंकर दर्द चालू हो गया इस साइड बहुत ज्यादा ठंडा थी सच बोलू तो इतना ज्यादा दर्द था की मन में आये हाथो को काट दू पर बाइक का इंजन ही हमारा मददगार बना, बार बार हाथो को गरम किया और आगे बढ़ चले, ये सफर बहुत भयानक था बस इतना ही कहना चाहूंगा इससे ज्यादा शब्द नहीं है मेरे पास, जैसे तैसे करके ये तीखी ढलान पार की, यहाँ धीरेन्द्र भाई हम से आगे निकल गए उनकी बाइक की स्पीड हम से तेज़ थी पर कुछ दूर जाके वो एक आइस कट पे फिसल गए बस भगवान का आशीर्वाद रहा की चोट ना लगी, न बाइक फिसल के खायी में गिरी, हम जब तक पहुंचे वो खड़े हो गए थे यहाँ तीखी ढलान खत्म हो गयी थी पर ढलान तो थी , कुछ दूर बाद दूसरा आइस कट मिला बहुत ही फिसलने वाला और इसकी ढलान भी बहुत ज्यादा थी तो हम ने उतर कर मिल के बाइक निकाली पर बड़ी मुश्किलों से यहाँ से बाइक निकल पायी। 


सच पास से आगे की ढलान पे बाइक दौड़ती हुयी-



                      इसके बाद कुछ दूर तक लैंड स्लाइड का इलाका आगया यहाँ सड़क छोटे छोटे पत्थरो से बनी हुयी थी ओर वही पत्थर निचे खिसकते रहते है ये पत्थर सड़क पे बनाते समय निचे डालने वाले पत्थर थे जो हमारे यहाँ भी डाले जाते है इनको रोड़ी बोलते है इनपे बाइक के टायर को ब्लेंस बनाना मुश्किल होता है तो फिर हमारी स्पीड कम हो गयी, अब हमारे शरीर में थकावट आने लगी थी, ब्रेक और क्लच दबा दबा के हाथो में दर्द आगया था, ऊपर से आगे की अगुलिया ठण्ड से दर्द कर रही थी धीरे धीरे शाम भी हो रही थी और यहाँ आदमी तो छोड़ो कोई पक्षी का भी नामो निशान नहीं था तो अगर कुछ हो जाये तो मदद तो भूल ही जायो, सबसे बड़ी समस्या साच पास से आगे मैं भी पहली बार ही आया था तो कहा क्या मिलेगा कुछ आईडिया नहीं, बस चले जा रहे थे चले जा रहे थे, इसी बीच एक जगह स्नो का झरना आया यहाँ ऊपर से पानी गिरे और निचे आने तक वो स्नो बन जाये, सूंदर अविश्वनीय नज़ारे मिले कुछ दूर पे ही हमे आइस स्टिक का एक झरना मिला इसका वीडियो भी मैं यहाँ डाल रहा हु जरूर पसंद आएगा इसके बाद हम कही नहीं रुके बस चलते गए

                        

                                       अरे हां एक और बात याद आयी, सनी भाई और धीरेन्द्र को मैंने उनके लक्षणो को देख के पीछे चलने का बोल दिया था और मैं आगे चल रहा था यहाँ फिर एक गड़बड़ हो गयी मैं एक मोड़ से थोड़ा आगे निकल गया और वो पीछे रह गए, फिर तक़रीबन 5 मिनट चलने पे ध्यान दिया की वो पीछे नहीं आरहे है लो जी हो गया कांड, मैं वही रुक गया और उनका इंतज़ार करने लगा साथ में जोर जोर से आवाज भी देने लगा जिससे उनको कोई रिप्लाई आजाये और पता लग जाये पर नहीं, बड़ी मुश्किल से 5 मिनट इंतज़ार कर पाया फिर योगी को वही उतर के वापस चला उनको देखने, इस रोड पे दो लोगो को लेके बाइक बड़ी मुश्किल से ही वापस जा सकती है और इस चिंता के समय तेज़ स्पीड चाहिए थी तो अकेला ही चला, मन में हज़ार तरह की शंकाये, भगवान करे सब सही हो, दिन में आज धीरेन्द्र भाई की बाइक काफी परेशान कर रही थी कही उसमे कुछ समस्या ना हो गयी हो, यही चल रहा था दिमाक में, कुछ दूर चलने पे वो आते हुए दिखाई दिए तब जान में जान आयी। उन्होंने मुझे वापस आते देख लिया और समझ गए की आज तो डांट पड़ेगी, मिलते ही सबसे पहले पूछा क्या हुआ सब ठीक है ना, हा ठीक है बस फोटो खींचने के लिए रुक गए थे, ओह तेरी और यहाँ मैं चिंता से मरे जा रहा था फिर हम साथ में ही निकले सब किसी को रुकने की छूट नहीं थी किल्लाड़ जाके ही रुकेंगे, यहाँ से बाइक भी 30 की स्पीड में चलने लग गयी थी लेकिन धीरे धीरे रात होने लगी और कही किलाड़ का नामो निशान भी ना दिख रहा था यहाँ तक की किसी पहाड़ पे एक लाइट भी नहीं दिख रहे थी, कुछ देर में फुल अँधेरा हो गया। 


बाइक की रौशनी में पुल का फोटो-





                                         अब आगे कुछ दिखयी नहीं दे रहा था बस चले जा रहे थे, काफी देर बाद एक पुल आया और उसके बाद पक्की सड़क, तो लगा की अब शायद पहुँच जायेंगे, तक़रीबन 10 किमी बाद किल्लाड आगया, किल्लाड की लाईट देख के ही जान में जान आगयी थी, वैसे मैं रात को बाइक नहीं चलता हु पर ऐसी जगह जब आप फस जायो तो क्या कर सकते हो।  रात को बाहर रुकना यहाँ तो मौत ही होती है, खेर हम सही सलामत किल्लाड़ पहुँच गए, सबसे पहले एक होटल लिया शायद 300-400 रुपये का कमरा था नोटबंदी के हिसाब से ठीक था फिर मस्त खाना खाया और रूम में आगये फिर कंधो पे मूव लगा के ताश खेली और सो गए। वैसे आज तो खतरनाक वाली नींद आने वाली है काम भी तो ऐसा किया है 12 घण्टे में 70 किमी, कल हम इस दुनिया की सबसे मुश्किल रोड पे बाइक चलाएंगे तो उसकी जानकारी अगले भाग में -
 
पूरा यात्रा वर्तान्त पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे
India's Deadliest ice road killar kishatwar bike trip in december
1. sach pass ice road दिल्ली से बैरागढ़
2.
sach pass ice road बैरागढ़ से किल्लार - भयंकर


इस यात्रा एक छोटा सा वीडियो यहाँ देखे -
                              

                               


कुछ फोटो -
कम से कम 150 फ़ीट ऊंचाई होगी इस झरने की -




सच पास से पहले का भयानक रास्ता -




साच पास पे मस्ती के कुछ पल


आइस स्टिक वाला झरना- 


पांगी पहुँचने पे सबसे पहला बोर्ड यही दिखा -

Sunday 28 May 2017

NIM Nehru Institute of Mountaineering A Journey by rakesh bishnoi

नेहरू पर्वतारोहण  सस्थान

Delhi to NIM
                                                                                लगभग 2 साल की कोशिश के बाद मुझे 1 मौका मिला मॉन्ट्रेनिंग का ओर वो भी NIM यानी नेहरू मॉन्ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की ओर से , मेरे एक खास दोस्त (चौधरी जी ) की मेहनत रंग लाई ओर मुझे ये मौका मिला । बहुत सुना था NIM के बारे में की ये हिन्दुस्थान की सबसे बढ़िया मॉन्ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट है यहाँ आने के लिए लोग 2-3 साल इंतज़ार करते है यहाँ के इन्सटेक्टर सबसे बढ़िया होते है और बहुत ज्यादा सख्त सिस्टम है यहां का ....चलो हम भी देखते है जोर कितना बाजुएं कातिल में है
                                 
                                 NIM की ओर से लैटर आते ही मैन 7600 रु की फीस ऑनलाइन भर दी । उसके बाद उन्होंने सीट नंबर  मुझे मेल कर दी तो भरोसा हो गया कि अबकी बार Nim जाना पका है उस मेल में एक लिस्ट भी थी जो सामान साथ लेके जाना था | कुछ सामान तो मेंरे पास था कुछ इस बार डीकेथेलोन (केचुआ) से ले लिया

                           लिस्ट में सबसे पहले वुलेन कैप था जो कि मेरे पास था पर एक हैट मुझे लेना पड़ा साथ मे एक लोअर , 2 शॉर्ट्स, 1 हेड लाइट, जुराबें, ट्रैक शूट मैन ले लिया कैमरा मेरे पास था ही साथ मे मोबाइल भी बढ़िया था जूते मैन कुछ समय पहले ही wildcraft के लिए थे उसको आजमाने का समय अभी आगया, एक वुडलैंड के सैंडल रख लिए ओर बाकी सब मैंने व्यवस्था करके बैगपैक कर लिया, अब सबसे जरूरी NIM जाने का रूट पता करना था............ 
इस लेख को पूरा पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे -

sach pass ice road दिल्ली से बैरागढ़

sach pass bike trip planing -


                                          इस बार ये कीड़ा सनी भाई को कटा और दुनिया की सबसे मुश्किल रोड के सफर का प्रस्ताव लेके आये,  मैंने इसी साल जून में साच पास किया था तब सोचा था दुबारा जरूर आयूँगा और पूरी रोड क्रॉस करूँगा अब मौका आया तो मैं 1 मिनट देरी किये बिना तैयार हो गया लेकिन शायद सनी भाई तैयार नहीं थे कुछ कहानी हो गयी और प्रोग्राम फिर लटक गया.  कुछ दिन बाद सनी भाई ने एक और कोशिश की लेकिन वो भी कामयाब नहीं हुयी तो मुझे लगा शायद सनी भाई ज्यादा सिरियस है नहीं बस प्लान बना के ही रखना चाहते है पर सनी भाई को कीड़ा बहुत जोर से कटा हुआ था और वो बैठने वालो में से है नहीं, काफी मेहनत के बाद जाना तय हुआ 30 नवंबर को 2 दिसम्बर को सच पास पहूंचना था।  मेरा कुछ काम भी था ड़लहौजी में तो मुझे उमीद जागी की ये ट्रिप तो पूरी हो ही जायेगा साथ में काम भी, पर इस बार मैं प्रोग्राम कैंसिल करने के मूड में न था इसीलिए सनी भाई को अच्छी तरह से फ़ोन पे ही समझ दिया धमका भी दिया की कहानी नहीं होनी चाहिए भाई, अब जबान दी है तो चलना ही पड़ेगा और एक बार कोई जबान देके जाये नहीं तो उसकी बात पे मैं दुबारा विश्वास नही करता। भाई ने तुरंत ही बात को समझ कर यात्रा ग्रुप में पोस्ट कर दिया और बाकि जगह भी राय मांगने को, और कोई साथी तैयार हो चलने को तो उसको भी घुमा लाये,

                                          यही एक नए साथी मिले धीरेंद्र। यही दोनों लोगो और योगी भाई इस यात्रा को कामयाब करने वाले लोग है जिनकी वजह से इतनी मुश्किल यात्रा सहकुशल ओर यादगार तरीके से पूरी की । इसी दौरान लोगो ने डराने की पूरी कोसिस भी की, एक भाई में तो सनी को फेसबुक पे कमाल का लिख दिया " if you are not only sun then you should go" खेर यहाँ से वापस जाके तो उसकी बात सही लगी पर उस टाइम हमने इसे एक चैंलेंज की तरह लिया था और इस यात्रा को पूरा करके दिखाना ही था ।


                                                  अब हमारा प्रोग्राम फाइनल हो गया सनी और धीरेंद्र मेरठ से बाइक पे डलहौज़ी आएंगे और मैं बस से सीधा उनको वही मिलूंगा। मैंने 30 नवम्बर रात को दिल्ली से डलहौजी की बस बुकिंग करवा ली और बाइक डलहौजी से मेरे दोस्त से ही किराये ले ली और सनी भाई ने बाइक की व्यवस्था आपने नोएडा के एक दोस्त से कर ली धीरेन्द्र भाई के पास तो खुद की बाइक है, सनी भाई ने बाइक लेने और कुछ नगद की व्यवस्था करने गुड़गांव आना था तो सोचा मुलाकात भी कर लेंगे क्योंकि अब तक हममे से कोई भी एक दूसरे से ना मिले थे सोचा कुछ जान पहचान हो जाएगी साथ में बाइक के लिए बैग भी दे दूँगा जोकि उनको सामान रखने के लिए चहिये थे, पर ये दिल्ली है मेरे दोस्त यहाँ मुलाकात समय से नहीं यातायात की व्यवस्था पे निर्भर करती है, हुआ यु की सनी भाई सुबह निकले मेरठ से नोएडा से बाइक ली और फिर गुड़गांव आये इतने में ही उनको शाम हो गयी और मेरी बस का समय भी हो गया तो मुलाकात ना हो सकी। मैंने यहाँ वाहा से कुछ नगद का जुगाड़ कर लिया और बस के लिए निकल पड़ा ।
      

          परिचय -

                                     हम सब अगले दिन मिले थे डलहौजी में पर आप लोगो को यात्रा के पहले दिन ही मैं सबका परिचय करवा देता हू वैसे तीनो भाई अद्धभुत खासियतों वाले थे पर जो जो में देख पाया जितना देख पाया उसके हिसाब से यहाँ वर्णन कर रहा हू  - 


          1. धीरेंद्र भाई

                                   वाह लाजवाब सख्सियत जैसा नाम वैसा भाई पूरी चलती फिरती दुकान है रॉयल एनफील्ड की सारे मुख्य पार्ट साथ ही रखते है यहाँ तजुर्बा बोलता है , बहुत ही सुलझी हुयी सख्सियत है भाई, एक दम कुल और जिसके साथ उसी को अपनाने की गजब की खासियत, बाइक का तो सब कुछ पता था ही भाई को, साथ में व्यवहार भी कुशल मधुरभाषी, मुझे भाई की सबसे अच्छी बात ये लगी की भाई जो था जैसा था सामने था कुछ भी छुपा नहीं ।।  ये है धीरेंद्र भाई -

           2. सनी भाई

                                  किसी फ़िल्मी हीरो जैसी पर्सनल्टी, खुद को मेंटेन रखते है गजब के खिलाडी है ये मत पूछना की खेल में☺, और काम तो आपने देख ही लिया है जो इस तरह के रास्तो में ले जाने की सोच रखता है वही हमारे लिए तो असली हीरो है, गजब का साहस थोड़ी सी बेवकूफी के साथ, एक आदर्श इंसान जिसके अन्दर हर खूबी है, मैं शरीर और हिम्मत से इनके जैसा बनना चाहता हू।

        3. योगी भाई

                                 हिमाचल के रहने वाले मेरे पुराने दोस्त है घूमना पसंद है लेकिन सिर्फ मेरे साथ ही बाइक पे घूमते है बाकी जगह सिर्फ गाड़ी से ही जाते है शायद विश्वास है उनको मुझपे और मुझे उनपे हमेशा साथ देते है मुश्किल समय पे घबराते नहीं है जल्दी से, वैसे ज्यादा यात्रा नहीं की इनके साथ पर आदमी की पहचान एक बार में ही हो जाती है


यात्रा की तैयारी

                         ये एक बहुत मुश्किल बाइक ट्रिप है तो हमने तैयारी पूरी की है और शायद इसी वजह से हमारे अंदर ये यात्रा सहकुसल पूरी करने का विश्वास है जैसा की गुरु जाट देवता कहते है की यात्रा पूरी करना उसकी तैयारी पर ही निर्भर करता है और ये बात बिलकुल सत्य है हमने इस यात्रा के लिए जो जो सामान साथ लिया उसकी एक लिस्ट बनायीं है  उमीद करते है कोई भाई जायेगा तो उसके ये लिस्ट काम जरूर आएगी वैसे हमारे साथ ये यात्रा करके आपको समझ आ ही जायेगा की इतने सामान की जरूरत क्यों पड़ती है

                           छोटे बैग पैक और 1 ड्रेस, अब बैग में सबसे पहले खाने के लिए सामान रखा जैसे काजू बादाम और लंबे समय तक एनर्जी देने वाला फ़ूड आइटम, छोटा पर ताकतवर ये शब्द हर सामान के लिए जरुरी है जैसे छोटा पर मजबूत हथोडा, छोटी पर मजबूत रस्सी, छोटी पर बढ़िया टोर्च, मेडिकल किट, बीएसएनएल की पोस्टपेड सिम डाला हुआ बड़ी बैटरी वाला छोटा मोबाइल, बहुत बढ़िया क्वालिटी के दस्ताने जो वाटरप्रूफ और विंडप्रूफ़ हो, बढ़िया फुल हेलमेंट जिसका मुँह भी खुलता हो, एंटी स्किड वाटरप्रूफ जूते, इनर, जैकेट और बाइकर कार्गो, मास्क, पोंचू, नगद 20 हजार रुपये, id बाइक के पेपर और लाइसेंस, 2 बैट्री बैंक,मोबाइल, अल्टीमीटर घडी इत्यदि


                                            अब हमारा प्रोग्राम फाइनल हो गया सनी और धीरेंद्र मेरठ से बाइक पे डलहौज़ी आएंगे और मैं बस से सीधा उनको वही मिलूंगा। मैं तो डलहौज़ी सुबह 6 बझे पहुँच गया और आपने काम करके 11 बझे फ्री हो गया लेकिन सनी भाई 2 घण्टे लेट हो गए सुबह 3 की जगह 5 बजे निकले घर से तो उनको 12 बजे मिलने की जगह 3 बज गए डलहौज़ी आते आते और मेरी हालात खराब हो गयी इंतज़ार करते करते । वैसे उनकी हालत भी ख़राब हो गयी जब लगातार 500 किमी की यात्रा करके मेरे पास पहुंचे, मेरठ से डलहौजी काफी थकान वाला सफर है ये, खेर मैने तो किया नहीं तो ज्यादा ना बता पायूँगा, फिर हमने चाय पी और साथ में बिस्किट मेरे फ़ेवरेट कैफ़े पे, और साथ में मुलाकात की अरे मतलब परिचय, हम सब के परिचय हो जाने के बाद हम निकले पहले दिन के ठिकाने की और वैसे मैंने भी सनी और धीरेंद्र के साथ अच्छा नहीं किया उनको खाना खिलाये बिना ही आगे बढ़ने पे मजबूर किया जबकी सुबह से उन्होंने कुछ खाया भी नहीं था पर क्या करते बैरागढ़ बहुत दूर था और रास्ता भी सही नहीं था तो रात में ज्यादा चलाने से समस्या होनी थी 4 बज गए थे और मेरा एक उसूल है रात में 9 बजे के बाद किसी भी हालत में बाइक नहीं चलानी है तो समय के हिसाब से स्पीड खेंच ली ।
                                               यही पहला पर्चा मिला सनी भाई का, मैंने तो यहाँ से बाइक चालू की थी और सनी भाई सुबह से ही चला रहे थे तो स्पीड उनके अंदर घुस चुकी थी बाइक पे बैठते ही वो तेज़ी से आगे निकल गए । लो भाई हो गया काम सनी भाई रास्ता जानते नहीं थे और मुझे लग रहा था कि ये जरूर गलत रास्ते पे ही जाएंगे और मेरी स्पीड इतनी तेज़ नहीं होती की मैं उनको पीछे जा के पकड़ सकू, पहला कट बनीखेत से 10 किमी बाद आता है एक रास्ता चम्बा की और और दूसरा रास्ता डैम की और जाता है और वो इसी कट से वो सीधा निकाल गए जबकि हमे नीचे चमेरा डैम की और जाना होता है मैंने देख लिया हॉर्न भी बजाया पर कहा सुनते वो चलो भाई निकालो फ़ोन अभी तो नेटवर्क है तो फ़ोन से काम चल जायेगा पर आगे ये गलती न हो इस लिए समझाना पड़ेगा नहीं तो समस्या आ जायेगी , भाई काफी आगे जाके रुके और फ़ोन देखते ही समझ गए की कोका हो गया है वापस जाना पड़ेगा । जब तक वो मोड़ पे वापस आये में दूसरे रस्ते पे आगे बढ़ गया , उनकी स्पीड काफी थी तो मुझे उनका इंतजार करने की जरूरत नहीं थी उन्होंने मुझे पकड़ ही लेना है यही सोच के में 5-6 किमी निकल गया अब मैं डैम पर पहुँच गया था और यहाँ भी 2 रास्ते है एक डेम के ऊपर से और एक सीधा जो 7 किमी का चक्कर है तो यही मैंने उनका इंतजार करने का सोचा साथ में आप के लिए 2-4 डैम के फोटो भी ले लिये

                अब सनी भाई पीछे और धीरेंद्र उनसे थोड़े आगे चलने लगे रहे थे, और सबसे आगे मैं, मैंने उनको बोल भी दिया की इसी तरह से ही चलेंगे हम लोग, डैम पर CRPF वालो ने बताया कि डैम पे रस्ते में रुकना मना है सीधा एक बार में क्रॉस करना है और फोटो तो बिलकुल मना है तो सीधा तेज़ी से निकल लिए । यहाँ से निकलने के बाद डेम के साथ साथ चलना है फिर नदी के साथ साथ तक़रीबन 15 -20 किमी के बाद एक पुल से दाहिने और मुड़ना होता है फिर आगे चम्बा का तिराहा आता है जहा से बायीं और चलना होता है हर जगह मैं आगे जाके खड़ा हो जाता जिससे दुबारा रास्ता भटकने की नौबत ना आ जाये और इस मौसम में यहाँ गाड़िया बहुत काम चलती है तो सबको साथ लेके ही चलना है किसी को भी कोई समस्या हो तो तुरंत सहायता मिल जाये, रास्ते में अंतिम पेट्रोल पम्प है बैरागढ़ से 20 किमी पहले और यहाँ कार्ड नहीं चलता पर टंकी यही से फूल करवानी पड़ेगी आगे कुछ नहीं मिलता है , टंकी फूल करवा के तेज़ गति से हम लोग लगभग 8 बजे बैरागढ़ पहुँच गए , अब यहाँ की सबसे बड़ी समस्या रुकने का ठिकना ढूढ़ने की थी थोड़ी क़ोशिस के बाद हमे एक सस्ता और बढ़िया होम स्टे मिल गया, सामान रख के उससे थोड़ी सी दुर इकलोते ढाबे पे पहुँच गए, इस समय यहाँ कोई नहीं आता है तो ढाबे नहीं चलते है पर इसने बढ़िया लोकल दाल खिलाई साथ में हमारे पास परांठे और दही था वो खाया और भर पेट खा के कमरे पे पहुँच गए , हमने 2 कमरे लिए है  200 रुपये में, नोटबंदी है भाई पैसे की बहुत किलत है तो मैंने और योगी ने आपना सामान रख के सनी भाई के पास कमरे पे धावा बोल दिया, सुबह जल्दी निकलने का पन्गा तो है न हीं तो आराम से मेल मिलाप करते है , यही हमारी काफी देर गप सप चली साथ में ताश की गेम भी , सनी भाई ताश के मेरठ लेवल के खिलाडी है तो हमे कई बार हराया पर फिर भी मज़ा बहुत आया, काफी देर खेलने के बाद हम आपने ठिकाने सोने निकल लिए और वो वही सो गए ।  कल से हमारी सबसे मुश्किल बाइक यात्रा है अगले भाग में कल का पूरा लेखा जोखा दूंगा -
पूरा यात्रा वर्तान्त पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे
India's Deadliest ice road killar kishatwar bike trip in december
1. sach pass ice road दिल्ली से बैरागढ़
2. sach pass ice road बैरागढ़ से किल्लार - भयंकर

Saturday 27 May 2017

NIM में ट्रेनिंग का श्री गणेश DAY -1

NIM में ट्रेनिंग का श्री गणेश -
हॉस्टल का पैनोरोमीक व्यू

Date 24 -4-2017
                                              मेरी हमेशा से ही जल्दी उठने की आदत है तो सुबह 4:45 उठ गया था फिर सबसे पहले फ्रेश हो गया और लगभग 5:20 तक तैयार हो गया अभी 6 बजे हमे रिपोर्ट करना है, तो समय था बाहर निकल के इधर उधर टहलने को, तो पास के रूम में ही झाकने चला गया अरे...  ये क्या वो तो सभी सो रहे थे उनको उठाया 5:30 हो गए है जल्दी तैयार हो जायो चलना है तभी मुझे ध्यान आया कि हमारे रूम वाले साथी भी शायद हो रहे है  आके देखा 2 भाई अभी भी सो रहे थे उनको उठाया ओर सब तैयार होकर NIM में बने हमारे हॉस्टल के गेट के बहार रोड पर पहुँच गए , इस जगह ही हमारा पुरे कोर्स फॉल इन हुआ ।
          
                                       सही 6 बजे सबकी गिनती हुई अभी तक हम 39 लड़के ही पहुंचे थे कुछ आज आने वाले है ओर 22 एडवांस कोर्स वाले साथी पहुंचे हुए है उनके भी कुछ आज शाम तक पहुँचेंगे, गिनती के बाद हमे 8 इन्सटेक्टर मॉर्निंग वॉक के लिए लेके निकल गए .... हमे बताया गया कि 2 किमी का एक राउंड है बस काट के आना है तो ठीक है ना इतने में कहा समस्या था । चल दिये ...... अभी 200 मीटर ही गए होंगे कि उन्होंने दौड़ने को बोल दिया कोई बात नही दौड़ भी लेंगे ...100 मीटर चलने पे पिटी का आदेश आगया अब दौड़ते हुए पिटी करने का ये मेरा पहला अनुभव था तो थोड़ी ही देर में हालात खराब, तभी नया आदेश आगया मेढक चाल का 20-25 कदम बड़ी मुश्किल से चले होंगे कि नया आदेश दंड निकलने का वो भी 30 सेकेंड होल्ड के साथ 10 दंड मे ही सब जगह से पसीना निकलने लग गया तो समझ आगया की यहाँ तो बहुत मुश्किल होने वाली है अभी फिर दौड़ाने का आदेश फिर मेढक चाल किया फिर एक जगह एक बिल्डिंग का छजा बाहर निकल हुया था तो उसको देख के इसटेक्टर ने उसपे लटक के पुशअप का आदेश दे दिया फिर पुशअप के साथ होल्ड का आदेश दिया तो हालात फिर खराब ..... अब वहा से फिर दौड़ने का आदेश आगया सांस आ नहीँ रहा था भयंकर वाली प्यास लगी थी लेकिन क्या कर सकते थे जैसे तैसे समय निकाल ओर वापसी की NIM की ओर । समय सुबह 7:30 पिटी से वापसी हुई सीधी निम के आर्टिफिशियल वाल क्लाइमिंग एरिया में वहाँ फिर से मुश्किल व्ययाम 30 मिनट तक किया फिर व्ययाम करने के बाद ऐसा लग रहा था मानो शरीर मे जान ही नही है , सब जगह से पसीना ही पसीना ........ पता नहीं शरीर ही ख़राब है या व्यायम ज्यादा करवा दिया जो भी हो सच बोलू तो नानी याद आगयी ।
पीटी करते हुए-


      व्ययाम के बाद हमे रोप में बांटा गया, ये रोप यहाँ पे साथ रहने वाली टीम को बोलते है 1 रोप पे 5-7 लोग हो सकते है हर रोप में एक रोप लीडर होता है और और बेसिक कोर्स का एक कैम्प लीडर , मेरी रोप का रोप लीडर तो मुझे बनाया गया और कैम्प लीडर आर्मी से आये कैप्टन सत्या को बनाया गया मेरा रोप नंबर 07 और कमरा नंबर 12 दिया गया, मेरी रोप में टोटल 5 साथी आये है, सबसे पहला नंबर मेरा फिर राम सिंह ऋषिकेश से है जो राफ्टिंग का काम करते है दुसरे साथी प्रमोद है जो सांकरी गांव से है हम अभी कुछ समय पहले ही सांकरी जाके आये है केदारकंठा समिट के लिए जाट भाई संदीप पंवार ओर मनु प्रकाश त्यागी के साथ (केदारकंठा यात्रा का विवरण यहाँ पढे), वही हमे प्रमोद का भाई प्रशांत मिला था जो की वहाँ स्की सिखाता है हम उसी के पास रुके थे तीसरा भाई कुंगा दोरजी लेह से है ये भाई थोड़ा थोड़ा शेरपा जैसा ही है छोटी हाइट का है पर कई बार स्टॉक कांगड़ी जा चुका है जिसकी ऊंचाई 6153 मीटर है और चौथा भाई अमित है जो कि उत्तरकाशी का लोकल ही है इनके व्यवहार और काबिलियत की जानकारी आगे देता रहूँगा, इन सबके बाद हमने कमरे में दुबारा समान सेट किया, क्युकी अब साथी बदल गये थे और हमे अभी नए साथियो के साथ ही रहना है फिर थोड़ी देर रेस्ट करके नास्ता करने चले गए ।
       नास्ते में 6 ब्रेड जेम एंड बटर लगाई हुई साथ मे एक्स्ट्रा बटर भी मिला, थोड़ा दलिया, चाय ओर फ्रूट
मिला जिसको खाके काफी अच्छा महसूस हो रहा था , लगा शरीर में वापस जान आगयी । नास्ता करने के बाद हम हमारे कमरे में आगये ओर में नहा लिया । यहाँ नहाने के लिए स्नानघर में 2 नल लगे है एक में गरम पानी जो की सोलर गीज़र से आता है और दूसरे में ठंडा पानी आता है हर कमरे में अंदर ही स्नानघर और शौचालय बना हुआ है नहा के तैयार हो गया फिर अगला कार्यक्रम था-

NIM स्टाफ़ परिचय ओर NIM का भर्मण -
                                                                      यहाँ के स्टाफ़ में सबसे बड़ा नाम है कर्नल अजय कोठियाल यहाँ के प्रिंसिपल (विशिष्ट सेवा मेडल, कीर्ति चक्र, शौर्य चक्र)जो 2 बार एवरेस्ट चढ़ चुके है तीसरी बार भी अपनी पूरी टीम को एवेरेस्ट चढ़ाया है इनके बारे जितना बताया जाये काम ही है उत्तराखंड में कर्नल अजय कोठियाल एक बहुत बड़ा नाम है तो आप समझ सकते हो क्या हस्ती होंगे , जब मुझे उनके बारे में जानकारी मिली थी तो मैं तो उनका फैन हो गया । बाकी सारे स्टाफ के बारे में में आपको धीरे धीरे आगे के लेखों में बतायूंगा, वैसे यह के स्टाफ में से भी 10-12  लोग एवेरेस्ट चढ़ चुके है इस इंस्टिट्यूट के नीव रखने वाले में एक नाम तेनजिंग शेरपा (एडमिन हिलेरी के साथी उनके साथ ही इन्होंने पहली बार एवेरेस्ट चढ़ी है ओर पहले एवरेस्ट चढ़ने वाले हिंदुस्थानी) का भी है, ये इंस्टिट्यूट भारत के सबसे बढ़िया माउंटेन इंस्टीट्यूट में से एक है और भी बहुत कुछ है जो NIM के नाम के साथ जुड़ा हुआ है , परिचय के बाद हमने निम का भर्मण किया, यह एक चौखम्बा नाम का होल है जिमसें मूवी, क्लास ओर कॉन्फ्रेंस होती है फिर उसके पास ही एक होस्टल है जिसमे तकरीबन 200 लोगो के रहने की व्यवस्था है उसके आगे एक बढ़िया तैयार पार्क है उसके आगे कुछ दूरी पे 2 आर्टिफिशियल रॉक कलाइम्बिंग वाल है एक हाल है जिसमे भी रॉक क्लाइम्बिंग की व्यवस्था है एक लाइब्रेरी है एक स्नोवियर शॉप है एक कैफ़े ओर संग्रालय भी है जिसका दुबारा निर्माण चल रहा है फिर एक बड़ा मॉन्ट्रेनिंग इकुपमेंट शॉप भी है जहाँ से किराये पे सामान मिलता है , और भी बहुत कुछ है यहाँ पे पर बस हमारा  इतना ही था हमारा भर्मण, फिर हमारी एक क्लास लगी जिसमे हमे सारे इकुपमेंट की जानकारी दी गयी कैसे ओर क्या क्या काम आते है कहा काम मे लेने है हमने, मैंने इस कॉल में एक गलती की पीछे बैठने की तो मुझे कुछ ज्यादा समझ नहीं आया थोड़े थोडे इकुप्मेंट दूर से ही देखे नाम भी कम ही समझ आये तो इस क्लास की ज्यादा जानकारी ना दे पायूँगा , स्कूल में पहला दिन है बच्चे से गलती हो रही है माफ़ कर देना ।
   
                                        अभी समय 1 बजे का हो गया तो खाने की घंटी बज गयी खाने में चावल दाल, आलू गोभी की सब्जी, सलाद, पनीर पालक की सब्जी ओर रोटी मिली भर पेट खा लिया और वापस कमरे पे आके सो गए । 2:30 वापसी रिपोर्ट करना था फॉल इन पे जहा से हमे मेडिकल करवाना था और साथ मे हमे हमारा सामान मिलना था मतलब इकुप्मेंट जो क्लास में बताये गए थे जब क्लास में पीछे बैठेंगे तो इकुप्मेंट को सामान ही बोलूंगा , सबसे पहले मेडिकल हुआ वजन 82.4 किलो, हाइट 181 CM बाकि सब ठीक है ये तो आराम से हो गया पर समान के लिए थोड़ी मेहनत करनी पड़ी, वो सबके इकुप्मेंट एक साथ ही निकल के दे रहे थे और चेक बहार जाके करना था तो जैसे तैसे लिया और बाहर आगये , यहाँ मनीष सर ने हमे दुबारा सबको अच्छी तरह चेक करने का बोला , साइज़ भी अच्छी  तरह चेक करना है क्युकी ये इस पुरे कोर्स हमारे सबसे भरोसेमंद साथी होंगे |  फिर साइज ही बड़ी समस्या थी चलो जैसे तैसे सामान मिला उसको लेके रूम पे आगये ओर चेक किया की सब सही तो है ना यही समान हमे रोज लेके जाना होगा इसी से हमारी पूरी ट्रेनिंग होगी, सामान की लिस्ट नीचे है
1. रकसैक बैग
2. स्लीपिंग बैग
3. इनर स्लीपिंग बैग का
4. स्नोशूज स्नो के लिए
5. शूज रॉक क्लीमम्बिंग के लिए (pa शूज)
6. विंडशीटर एंड लोअर (इसमें मेरे साथ धोखा हुआ )
7. स्क्रू केरावेनर & प्लेन केरावेनर
8. शीट हार्नेस
9. लोंग सीलिंग
10. क्रेम्पोंन
11. गेटर्स
12. टिफन चमच मग (मिस्टीन)
13. गार्बेज बैग
14. जैकेट बड़े साइज़ का
15. 40 मीटर की रोप
16. 2 पेअर बिटन
17. 1 रैपलिंग जैकेट
18.  वाटर बोटल
बस इतना ही सामान दिया टोटल वजन 20-25 किलो , मेरे सारे साथी माउंटेन लाइन से थे तो उन्होंने सब इकुप्मेंट की जानकारी मुझे रूम में दे दी, मुझे ये सबकुछ काफी इंटरस्टिंग लगा। 

                                  फिर शाम को यहाँ खेलने के लिए भी समय दिया जाता है जो बाद में हमे समझ आया की कितना जरुरी है आज हमने 1 घंटा वॉलीबाल खेला, वैसे मुझे वॉलीवाल खेलना आता नहीं है बस थोड़ा बहुत हाथ मार लिए , फिर रात का खाना 8 बजे मिला घंटी बजी और खाने चले गये खाने में दाल चावल, 2 सब्जी और रोटी थी साथ मे खीर भी थी, बस खा के आ के सो गये । इतना ही था आज का दिन कल से सुबह हमारा हिल वाक है थोड़ी सी चढ़ाई बताई गयी है तो उसके बारे में सोच के सो गए कल की जानकारी अगले लेख में


NIM का मेरा पूरा तजुर्बा आप क्रम के हिसाब से नीचे दिए लिंक से पढ़ सकते है -
1.NIM -Nehru Institute Of​​ Mountaineering.......बेसिक कोर्स मेरे साथ
2.NIM में ट्रेनिंग का श्री गणेश DAY -1

3. NIM Basic Mountaineering Course Day-2


आज का नास्ता -


हाल में मै और पीछे मेरी रोप के दूसरे साथी     

हमारा रकसैक बैग


सारे इकुप्मेंट-






Friday 26 May 2017

NIM -Nehru Institute Of​​ Mountaineering.......मेरे साथ बेसिक कोर्स

   

Delhi to NIM

                                                                  लगभग 2 साल की कोशिश के बाद मुझे 1 मौका मिला मॉन्ट्रेनिंग का ओर वो भी NIM यानी नेहरू मॉन्ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की ओर से , मेरे एक खास दोस्त (चौधरी जी ) की मेहनत रंग लाई ओर मुझे ये मौका मिला । बहुत सुना था NIM के बारे में की ये हिन्दुस्थान की सबसे बढ़िया मॉन्ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट है यहाँ आने के लिए लोग 2-3 साल इंतज़ार करते है यहाँ के इन्सटेक्टर सबसे बढ़िया होते है और बहुत ज्यादा सख्त सिस्टम है यहां का ....चलो हम भी देखते है जोर कितना बाजुएं कातिल में है
                                  NIM की ओर से लैटर आते ही मैन 7600 रु की फीस ऑनलाइन भर दी । उसके बाद उन्होंने सीट नंबर  मुझे मेल कर दी तो भरोसा हो गया कि अबकी बार Nim जाना पका है उस मेल में एक लिस्ट भी थी जो सामान साथ लेके जाना था | कुछ सामान तो मेंरे पास था कुछ इस बार डीकेथेलोन (केचुआ) से ले लिया

                           लिस्ट में सबसे पहले वुलेन कैप था जो कि मेरे पास था पर एक हैट मुझे लेना पड़ा साथ मे एक लोअर , 2 शॉर्ट्स, 1 हेड लाइट, जुराबें, ट्रैक शूट मैन ले लिया कैमरा मेरे पास था ही साथ मे मोबाइल भी बढ़िया था जूते मैन कुछ समय पहले ही wildcraft के लिए थे उसको आजमाने का समय अभी आगया, एक वुडलैंड के सैंडल रख लिए ओर बाकी सब मैंने व्यवस्था करके बैगपैक कर लिया, अब सबसे जरूरी NIM जाने का रूट पता करना था तो आपने यात्रा ग्रुप में पूछ लिया जानकारी मिली हरिद्वार या ऋषिकेश से आराम से बस मिल जाएगी सुबह सुबह,  तो रात की 10:16 की एक उत्तरप्रदेश वूल्वो कि ऋषिकेश की 743 रु में टिकट बुक करवा ली।

        एक महीने की ट्रेनिंग थी तो सबसे बड़ी समस्या थी आफिस में सब सेटिंग करने की, ऊपर से हमारे आफिस की सबसे मैन कोडिनेटर सीमा की शादी है 10 मई को तो उनको भी 1 मई से एक महीने की छुटि चाहिए थी ...समस्या तो गंभीर बन गयी पर जहा चाह वहाँ राह होती ही है तो बड़े भईया को मनाया दिल्ली आ के आफिस संभालने को ओर मैडम को बोला थोडे कम दिनों की छुट्टी लेने को ... इस तरह यात्रा की रुकावटे दूर की ।

         आखिर 22 अप्रैल के दिन आगया जिस दिन यात्रा चालू करनी थी शाम को नहा के घर से खाना बना के और भर पेट खा के निकल गया, कश्मीरी गेट बस स्टैंड जाके पता किया तो बस का डिस्पेच गेट नंबर का पता किया, 12 नंबर गेट से मेरी बस समय से निकल गयी इस बीच मेरी जाट भाई से बात हुई थी तो प्रोग्राम में थोड़ा परिवर्तन कर लिया अब मैं हरिद्वार से ही बस बदलूंगा यही सोच के 3 बजे की अलार्म लगा के सो गया, मुझे बस हो या ट्रैन या कोई भी जगह नींद बड़ी जल्दी आजाती है तो आराम से सो गया सुबह 3:15 पे उसने समय पे हरिद्वार पहुंचा दिया वहाँ फ्रेश होके उत्तरकाशी वाली बस ढूंडी 5 बजे का समय था उसका चलने का ओर 270 रु किराया।  बैग रखके में चाय पीने चला गया साथ मे थोड़ा टाइम पास भी कर लिया इधर उधर घूम के पर बस 5 की जगह 5:30 निकली हरिद्वार से, बहुत ही खटारा बस थी पूरी हिल रही आज तो उत्तरकाशी की जगह कही सीधा भगवान के पास ही न पहुंचा दे और मेरा माउंट्रेनिंग का सपना सपना ही ना रह जाये, जैसे तैसे चले फिर ऋषिकेश ओर चम्बा भी उसका 30 मिनेन्ट का स्टॉप था तो वही आराम से उत्तर के थोड़ा घूम लिया साथ मे चम्बा में नास्ता भी कर लिया 2 समोसों का । यहां बस में हरिद्वार से आये इशांत भाई से बात हुयी जो एडवांस कोर्स करने NIM ही जा रहे थे उनसे दोस्ती हो गयी तो पता चला कि उन्होंने JIM (जवाहर इंस्ट्यूट ऑफ़ माउंट्रेनिंग सोनमर्ग)  से बेसिक कोर्स किया है पिछले साल, बस उत्तरकाशी तक उनसे कोर्स की जानकारी ले ली ओर साथ मे थोड़ी नींद भी ।

       हम दोपहर 1:30 पे उत्तरकाशी पहुंच गए यहाँ पे NIM का एक रिसेप्सन बना था  होटल भंडारी के अंदर बस स्टैंड के सामने ही , वहाँ जाके एंट्री करवाई ओर खाना भी वही खाया, वहाँ हमे साथ वाले कई स्टूडेन्ट भी मिल गए, सबसे पहले जो एडवांस करने आये उनसे जल्दी से जल्दी ज्यादा जानकारी लेले आगे जाने के बाद ये मौका मिले की नहीं और साथ में वो ही बता सकते थे की हमारे साथ आगे एक महीने तक क्या होने वाला है बस लग गए फिर , तक़रीबन 1 घंटे तक वही चर्चा चलती रही ज्यादा कुछ समझ तो आया नहीं पर हा सबने एक बात जरूर बोली जो भी होगा अच्छा ही होगा , NIM ने वहा से इंस्टिट्यूट तक लाने के लिए एक बस भी लगा रखी थी उसी से हम इंस्टीट्यूट के लिए निकल गए , उत्तरकाशी से NIM तकरीबन 3 किमी दूर है तो 10 मिनट में पहुंच भी गए |

     वाह जैसा नाम सुना था वैसी ही व्यवस्था,  हरा भरा एरिया बड़े बड़े चीड़ के पेड़, शानदार भवन, बहुत बड़ा कैम्प्स, आर्मी एरिया की तरह साफ़ सुथरा , बड़ी बड़ी बिल्डिंग्स बानी हुयी है कुछ जगह मिस्त्री भी लगे है, भाई मुझे ये सब बहुत पसंद आया,  यहाँ आते ही सबसे पहले एंट्री हुई हॉस्टल में ही वहा रेखा मेडम और मनीष सर ने हमारी कागज चेक किये कुछ लोगो की फीस बाकि थी वो ली,
फिर होस्टल में रूम अलॉट कर दिए मेरा कमरा नम्बर 12 है,एक कमरे में 6 लोगो को रोका गया बेसिक और एडवांस के रूम अलग अलग थे शाम तक सभी साथियों के साथ मेल मिलाप चला, सबसे चर्चा यही हुयी की आगे क्या होगा। .... कुछ साथयो के घर से किसी दूसरे ने पहले कोर्स किया हुआ था तो उन्होंने भी कुछ जानकारी दी खेर समय जल्दी बीत गया और फिर रात का खाना खाने का समय आगया, NIM का पहला खाना साधारण पर पोस्टिक और स्वादिस्ट था एक दाल और साथ में पता गोभी की सब्जी और हा भात खाने वालो के लिए चावल भी थे और रोटी वालो के लिए बढ़िया रोटियां, खाना खा के हम सो गए सुबह 4:45 उठने को । अगले भाग में पहले दिन का सारा वर्तन्त लेके जल्दी ही हाजिर होयुगा |


NIM का मेरा पूरा तजुर्बा आप क्रम के हिसाब से नीचे दिए लिंक से पढ़ सकते है -
1.NIM -Nehru Institute Of​​ Mountaineering.......बेसिक कोर्स मेरे साथ
2.NIM में ट्रेनिंग का श्री गणेश DAY -1

3. NIM Basic Mountaineering Course Day-2

हरिद्वार से उत्तरकाशी जाने वाली बस -

उत्तरकाशी का विहंगम दर्शय                       


NIM में बना हमारा हॉस्टल और साथ में है सिनेमा हाल


हॉस्टल के अंदर का फोटो

हॉस्टल में हमारा रूम

Sunday 1 January 2017

India's Deadliest ice road killar kishatwar bike trip in december

India's Deadliest ice road killar kishatwar bike trip in december 

दुनिया की सबसे मुश्किल किल्लार किश्तवार रोड की बाइक यात्रा


यात्रा की कुछ यादे -

                               इस शानदार ऐतिहासिक यात्रा की शुरुवात यात्रा ग्रुप से हुई, ये यात्रा ग्रुप ( travel talk ) हमारे घुमक्कड़ भाइयो का एक समूह है जहाँ हम कुछ भी उल्टी या सीधी यात्रा करने से पहले चर्चा करते है मुझे तो बहुत पहले से ही उल्टी यात्राएं करने का कीड़ा कटा हुआ है और यहाँ तो बहुत सारे मेरे जैसे है जिनको उसी कीड़े ने कटा है इसीलिए यहाँ यात्रा के अवसर आते रहते है बस आपकी तैयारी होनी चाहिये । इस ग्रुप के नियम बहुत सख्त है जिनकी वजह से कई बार साथी यहाँ रह नहीं पते है पर जो रहते है उनके साथ हर यात्रा की तैयारी करते है ये सब लोग गुरु है जिनके सहयोग से बहुत यात्राएँ करनी है सब एक से बढ़कर एक घुमक्कड़ है जैसे जैसे यात्राएँ होती रहेगी सबका परिचय भी आपके पास आता रहेगा।

                              सबसे पहले आपको जानकार गर्व होगा की इस बाइक ट्रिप पे दिसम्बर में आजतक कोई नहीं गया है हम चार वो पहले बाइकर है जिन्होंने इस बाइक ट्रिप को पूरा किया और इसका पूरा पूरा श्रेय श्री मान सनी मलिक महाराज को जाता है इसका परिचय अगले भाग में आयेगा, इस दुर्गम बाइक ट्रिप की शुरुवात डलहौजी से 114 किमी दूर पर स्थित बैरागढ़ गॉव से चालू होती है बैरागढ़ से साच पास लगभग 32 किमी भयानक दुर्गम रोड वाला रास्ता है जिसमे बहुत जगह पानी के झरने रोड पे ही चलते है जो गर्मी और सर्दी दोनों समय मुसीबत का पर्याय है एक दम खड़ी चढ़ाई और पत्थरो से बना रास्ता ये पहचान है यहाँ की, साचपास की ऊंचाई 4420 मीटर 14500 फ़ीट है जहाँ गर्मियों में भी दिन का तापमान माइनस में बना रहता है तो सर्दी की कल्पना तो हम कर ही सकते है वहा से किल्लर की दुरी 40 किमी है जो की इतनी मुश्किल रोड है की सर्दी में उस साइड से वापस साचपास आना लगभग नामुमकिन ही है एक दम सुखी ठण्ड और भयानक मोड़ साथ में खड़ी चढ़ाई।
               
                                  .... शायद जो वहा जाता है वही इस बात को समझ सकता है शब्दो में बयां करना नामुमकिन है उस साइड भी सड़क पे गिरते बर्फ के झरने इस सफर की बहुत बड़ी मुसीबत है इस रोड की सबसे बड़ी खासियत इस समय यहाँ इका दुका वाहन ही चलते है तो आपको कुछ समस्या होने पे सहायता की उमीद बहुत कम होती है जो होगा आपको खुद निपटना पड़ेगा। खेर इससे आगे की किल्लार से किश्तवार की रोड के बारे में तो क्या कहने वो इस रोड से कम से कम 5  गुना ज्यादा खतरनाक है और मैं कोशिश करूँगा की उस सफर को आपके सामने उसी रूप में उतार पाऊ,  हा रास्ते की सबसे बढ़िया जगह किल्लार क़स्बा है  सच में उमीद से बहुत ज्यादा है यहाँ किल्लर कस्बे से डाम्बर रोड कम से कम 80 किमी की दुरी पर है फिर भी यह क़स्बा अपने आप में बहुत कुछ समेटे है यहाँ से किश्तवार की दुरी 120 किमी है और किश्तवार से पटनीटॉप की दुरी भी 120 किमी है बस इतना ही मुश्किल सफर है 
                      दोस्तों आगे इस यात्रा की तैयारी का प्लान केसे बना और हमारे खास दोस्तों का परिचय जिनकी साथ हमने ये यात्रा करनी है जल्द ही लेके आयुंगा उमीद करता हु आप मेरा साथ देंगे जो भी राय हो जरूर दे जिससे यात्रा की ज्यादा से ज्यादा जानकारी दे पाऊँ। 
                               
अब मैं हर यात्रा का एक विडियो भी बनायूंगा जो आप मेरे youtube चैनल पे देख सकते है  ये मेरा पहला विडियो है उमीद करते है आपको पसंद आएगा। मेरे सभी विडियो देखने के लिए आप मेरे  चैनल को सब्सक्रइब कर सकते है 

अपनी राय youtube  पे जरूर दे।


पूरा यात्रा वर्तान्त पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे
India's Deadliest ice road killar kishatwar bike trip in december
1. sach pass ice road दिल्ली से बैरागढ़
2. sach pass ice road बैरागढ़ से किल्लार - भयंकर